Saturday, July 11, 2020

बादरु गरजइ बिजुरी चमकइ

[ठा० गंगाभक्त सिंह "भक्त" (स्वर्गीय) फतेहगढ़ के प्रसिद्ध और लोकप्रिय कवि रहे हैं, कन्नौजी लोकसाहित्य पर उनकी बहुत अच्छी रचनाएँ हैं। उन्हीं में से यह लोकगीत उनका बहुत प्रसिद्ध व लोकप्रिय कन्नौजी गीत है।]

कन्नौजी गीत

बादरु गरजइ बिजुरी चमकइ
बैरिनि ब्यारि चलइ पुरबइया,
काहू सौतिन नइँ भरमाये
ननदी फेरि तुम्हारे भइया

दादुर मोर पपीहा बोलइँ
भेदु हमारे जिय को खोलइँ
बरसा नाहिं, हमारे आँसुन
सइ उफनाने ताल-तलइया
काहू सौतिन...

सबके छानी-छप्पर द्वारे
छाय रहे उनके घरवारे,
बिन साजन को छाजन छावइ
कौन हमारी धरइ मड़इया ।
काहू सौतिन...।।

सावन सूखि गई सब काया
देखु भक्त कलियुग की माया,
घर की खीर, खुरखुरी लागइ
बाहर की भावइ गुड़-लइया
काहू सौतिन...

देखि-देखि के नैन हमारे
भँवरा आवइँ साँझ–सकारे,
लछिमन रेखा खिंची अवधि की
भागि जाइँ सब छुइ-छुइ ढइया
काहू सौतिन...

माना तुम नर हउ हम नारी
बजइ न एक हाथ सइ तारी,
चारि दिना के बाद यहाँ सइ
उड़ि जायेगी सोन चिरइया
काहू सौतिन...

-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त

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