Wednesday, April 26, 2023

जब से यह देखे हैं बतियाने नैन


जब से यह देखे हैं बतियाने नैन
फूलों की बरसा से बरसाते बैन
डोल गया डोल गया, डोल गया मन
जीवन में आया नयापन।

प्यार भरे मौसम की भाषा है मौन
अन्तर पट खोल गया गया है जाने कौन
एक दूसरे को आओ नैन मूँद देखे
जंजाली दुनिया को एक ओर फेकें
प्राण हमें एक मिला गूँगे दो तन
जीवन में आया नयापन।

साँसों में घुलने लगी चम्पा की गंध
सदियों के टूट गए सारे अनुबंध
कल्पना के पंखों से आसमान छूलें
और कभी भावों के झूले पे झूलें
होने न पाए कभी प्रीति अपावन
जीवन में आया नयापन।

अलकों संग खेल रही चन्दनी बयार
झुकी-झुकी पलकों में मुस्काए प्यार
फूल से कपोल हुए शर्म से गुलाबी
मदमाते नैन लगें जन्म के शराबी
कर रहा है तुमपे पवन तन-मन अर्पन
जीवन में आया नयापन।

-पवन बाथम
कायमगंज

Sunday, July 24, 2022

छूटि अओ देसु

छूटि अओ पानी अउ छूटि अओ देसु
रोटिन की खातिर  मिलो हइ परदेसु
जाड़िन मइंँ यादि आई कथरी अउ खेस
लाइ कोई खटिया पइ करइ हमइंँ पेस।। 

गरमिन के दिन अउर पेड़न पइ बउर 
मकई  की रोटी संग चटनी को कउर 
गाँव छोड़ि ढूँढइ कोई अंत काये अउर 
अपनो सो गाँउ नाईं धत्ती पइ अउर ।। 

घूमि लई दुनिया अउ घूमि लये देस 
भूलि गए देस, गाँव मन मइंँ अब सेस 
कहइँ जल्लाबाद बारे सुनउ संदेस
आधी खाइ लिअउ भइया बसिअउ ना बिदेस।। 

-डॉ० सुभाष शर्मा, आस्ट्रेलिया

Saturday, July 11, 2020

बादरु गरजइ बिजुरी चमकइ

[ठा० गंगाभक्त सिंह "भक्त" (स्वर्गीय) फतेहगढ़ के प्रसिद्ध और लोकप्रिय कवि रहे हैं, कन्नौजी लोकसाहित्य पर उनकी बहुत अच्छी रचनाएँ हैं। उन्हीं में से यह लोकगीत उनका बहुत प्रसिद्ध व लोकप्रिय कन्नौजी गीत है।]

कन्नौजी गीत

बादरु गरजइ बिजुरी चमकइ
बैरिनि ब्यारि चलइ पुरबइया,
काहू सौतिन नइँ भरमाये
ननदी फेरि तुम्हारे भइया

दादुर मोर पपीहा बोलइँ
भेदु हमारे जिय को खोलइँ
बरसा नाहिं, हमारे आँसुन
सइ उफनाने ताल-तलइया
काहू सौतिन...

सबके छानी-छप्पर द्वारे
छाय रहे उनके घरवारे,
बिन साजन को छाजन छावइ
कौन हमारी धरइ मड़इया ।
काहू सौतिन...।।

सावन सूखि गई सब काया
देखु भक्त कलियुग की माया,
घर की खीर, खुरखुरी लागइ
बाहर की भावइ गुड़-लइया
काहू सौतिन...

देखि-देखि के नैन हमारे
भँवरा आवइँ साँझ–सकारे,
लछिमन रेखा खिंची अवधि की
भागि जाइँ सब छुइ-छुइ ढइया
काहू सौतिन...

माना तुम नर हउ हम नारी
बजइ न एक हाथ सइ तारी,
चारि दिना के बाद यहाँ सइ
उड़ि जायेगी सोन चिरइया
काहू सौतिन...

-ठा० गंगाभक्त सिंह भक्त

खेतन खेलइँ चिरई-चिरौटा

खेतन खेलइँ चिरई-चिरौटा
बढ़िगई विरबन केरी सान

गेहुँन की मुइयाँ पियरानी
ताकइँ देउर भउजी
भारी पाँव देखि कइँ इनके
गामइँ गीत कनउजी
भूलि गए घरवार सबइ जे
ठंडो परि गओ चढ़ो अधान
खेतन खेलइँ चिरई चिरौटा
बढ़िगई .............।

अर्रा उझकि-उझकि बतियाबै
का हम तुमहिं बतामैं
पहिले खेतन अउ खरिहानन
हमहीं पाँव जमामैं
ई पीढ़ी के हम है बुजरुग
हमईं हैं परधान 
खेतन खेलइँ चिरई चिरौटा
बढ़िगई .............।

-मदन तिवारी मदन


जुगनू खेलैं छुआ-छुऔरी

कन्नौजी गीत

जुगनू खेलैं छुआ-छुऔरी
रजनी दिशा-दिशा मँइ दौरी
आवौ दिवटा पे दीया जरावैं सजनी

फूटैं भेजइँ गंध निमंत्रण
भुंटा हमइँ बुलावैं
पसर ककरी नार मका मइँ
खीरन सइ बतियावैं
कब सइ कोयल करइ गुहार
पपिहा चाहइँ मेघ-फुहार
आवउ हमहूँ दुआरे बतियावैं सजनी
आवौ दिवटा पे दीया ...........।

करिया बादर चले पछाँह सइ
अँजुरिन फिकिहइँ पानी
दिखिअउ अब धरती की भिजिहइ
नीकी चूनर धानी
रहि-रहि बिजुरी चमकै जोर
बाहर बँधे भये सब ढोर
आवौ छपरा मइँ छोर बँधावइँ सजनी
आवौ दिवटा पे दीया ...........।

-अतुल पाठक

खेत मँइ उखारी

खेत मँइ उखारी आठ आठ हाँत  खूँड़ ठाड़े
चारि बीघा मूंँगफली फूली चली आउति हइ
बाजरा फरो हइ बाली हाँत  हाँत  ऊंँची बढ़ी
हमऊँ चबाउत हइँ चिरइअउँ चबउतीं हइँ
देखि देखि परसन हुइ खेत सकरकंदी को
मूसर सी मोटी बैठि भूमि चिटकाउति हइ
भँइसि हइ बिआनी गाय आजु कल्लि लागि रई
मठा माँगिबे  कउ सची नित्य ललचाउति हइ.

 -पं.तुरंतनाथ शास्त्री,
बाण, हरदोई